Stories Of Premchand
21: प्रेमचंद की कहानी "प्रायश्चित" Premchand Story "Prayashchit"
- Autor: Vários
- Narrador: Vários
- Editor: Podcast
- Duración: 0:30:50
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Sinopsis
सुबोधचन्द्र कोई घंटे-भर में लौटे। तब उनके कमरे का द्वार बन्द था। दफ़्तर में आकर मुस्कराते हुए बोले—मेरा कमरा किसने बन्द कर दिया है, भाई क्या मेरी बेदख़ली हो गयी? मदारीलाल ने खड़े होकर मृदु तिरस्कार दिखाते हुए कहा—साहब, गुस्ताखी माफ हो, आप जब कभी बाहर जाएँ, चाहे एक ही मिनट के लिए क्यों न हो, तब दरवाज़ा-बन्द कर दिया करें। आपकी मेज पर रुपये-पैसे और सरकारी कागज-पत्र बिखरे पड़े रहते हैं, न जाने किस वक्त किसकी नीयत बदल जाए। मैंने अभी सुना कि आप कहीं गये हैं, जब दरवाज़े बन्द कर दिये। सुबोधचन्द्र द्वार खोल कर कमरे में गये ओर सिगार पीने लगें मेज पर नोट रखे हुए है, इसके खबर ही न थी। सहसा ठेकेदार ने आकर सलाम कियां सुबोध कुर्सी से उठ बैठे और बोले—तुमने बहुत देर कर दी, तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था। दस ही बजे रुपये मँगवा लिये थे। रसीद लिखवा लाये हो न? ठेकेदार—हुज़ूर रसीद लिखवा लाया हूँ। सुबोध—तो अपने रुपये ले जाओ। तुम्हारे काम से मैं बहुत खुश नहीं हूँ। लकड़ी तुमने अच्छी नहीं लगायी और काम में सफाई भी नहीं हे। अगर ऐसा काम फिर करोंगे, तो ठेकेदारों के रजिस्टर से तुम्हारा नाम निकाल दिया जायगा। यह कह कर सुबोध ने मेज पर नि