Stories Of Premchand

15: प्रेमचंद की कहानी "सभ्यता का रहस्य" Premchand Story "Sabhyata Ka Rahasya"

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Sinopsis

यह एक रात को गैरहाज़िर होने की सज़ा थी ! बेचारा दिन-भर का काम कर चुका था, रात को यहाँ सोया न था, उसका दण्ड ! और घर बैठे भत्ते उड़ानेवाले को कोई नहीं पूछता ! कोई दंड नहीं देता। दंड तो मिले और ऐसा मिले कि ज़िंदगी-भर याद रहे; पर पकड़ना तो मुश्किल है। दमड़ी भी अगर होशियार होता, तो जरा रात रहे आकर कोठरी में सो जाता। फिर किसे खबर होती कि वह रात को कहाँ रहा। पर गरीब इतना चंट न था। दमड़ी के पास कुल छ: बिस्वे ज़मीन थी। पर इतने ही प्राणियों का खर्च भी था। उसके दो लड़के, दो लड़कियाँ और स्त्री, सब खेती में लगे रहते थे, फिर भी पेट की रोटियाँ नहीं मयस्सर होती थीं। इतनी ज़मीन क्या सोना उगल देती ! अगर सब-के-सब घर से निकल मज़दूरी करने लगते, तो आराम से रह सकते थे; लेकिन मौरूसी किसान मज़दूर कहलाने का अपमान न सह सकता था। इस बदनामी से बचने के लिए दो बैल बाँध रखे थे ! उसके वेतन का बड़ा भाग बैलों के दाने-चारे ही में उड़ जाता था। ये सारी तकलीफें मंजूर थीं, पर खेती छोड़कर मज़दूर बन जाना मंजूर न था। किसान की जो प्रतिष्ठा है, वह कहीं मज़दूर की हो सकती है, चाहे वह रुपया रोज ही क्यों न कमाये ? किसानी के साथ मज़दूरी करना इतने अपमान की बा